जय श्री राम - गुरुवर - वृषभ लग्न (26.19डी) मे अकारक 12वे व 7वे के स्वामी मंगल का ( चौथे के स्वामी के द्वारा - चौथे से चौथे 7तम के स्वामी ) काअस्त होके सूर्य राहू के साथ 8वे धनु राशिमे पुष्कर नवमांश मे बैठना - कारक एवं लग्नेश शुक्र (27डी) का स्वराशि का 6ठ्ठे मे केतुकी 5वी द्रष्टि मे होना - मंगल की 7वी द्रष्टि 2nd मिथुन राशि पे जिसका स्वामी 7वे भावमे वक्री बुधका योगकारक शनीकी 3rd द्रष्टि और स्वगृही गुरु की 9मी द्रष्टि मे होना - कार्कात भावम के नियम के मुताबित शुक्रसे 7वे मेष 12वे भावका स्वामी वही मंगल अष्टम मे विपरीत राजयोग मे होना - भाव चलितमे राहू केतुका 7वे मे बुध को और लग्न को प्रभावित करना - 0डी के वर्गोत्तम चन्द्र के लग्न से भी 7वे भावमे मेष के स्वामी अग्नि तत्व मंगल अग्नि तत्व धनु राशि अग्नितत्व सूर्य के साथ वैवाहिक जीवन कैसा दर्शाता है
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